एक ज़माना था जब इंसान पैदल सफर किया करता था। जैसे जैसे विज्ञान ने तरक्की की, इंसान ने सफर को आसान बनाना शुरू कर दिया। शुरुआत में घोड़ा और बैलगाड़ी पर सफर किया जाता था। इस क्षेत्र में इंसान ने असली तरक्की तब की जब वैज्ञानिको ने इंजन का आविष्कार किया। इंजन बनने के बाद मोटर गाड़ियां, ट्रैन व अन्य यातायात साधनों का जन्म हुआ। आज दुनिया में तेज़ी से सफर करने के लिए हवाई जहाज़ और बुलेट ट्रैन जैसे यातायात के साधन मौजूद हैं। इन साधनों की मदद से हम हज़ारो किलोमीटर का सफर कुछ ही घंटो में तय कर सकते हैं। आज हम जो भी यातायात के साधन देखते हैं उनको बनाने के पीछे सैंकड़ो सालो की मेहनत छुपी हुई है।
आपको पता ही होगा कि हमारे भारत देश का रेल नेटवर्क बहुत बड़ा है। दुनिया के नज़रिये से अगर देखा जाए तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद हमारे भारत का ट्रैन नेटवर्क चौथा सबसे बड़ा ट्रैन नेटवर्क है। आंकड़ों की अगर बात करें तो भारतीय रेल नेटवर्क 123,542 किलोमीटर लम्बा है। भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का सबसे व्यस्त रेलवे नेटवर्क कहलाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के अंदर हर रोज़ लगभग 2.4 करोड़ लोग ट्रैन का सफर करते हैं। भारतीय रेलवे भारत का सबसे ज़्यादा नौकरियाँ देने वाला विभाग है। सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भारतीय रेलवे नौकरियाँ देने के मामले में आठवें स्थान पर है।
मार्च 2019 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में भारतीय रेल विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या लगभग 13 लाख थी। भारतीय रेल का इतिहास 150 साल से भी ज़्यादा पुराना है। जिस समय भारत में रेल की शुरुआत हुई उस समय भारत पर अंग्रेज़ों की हुक़ूमत थी। उस समय के भारतीय गवर्नर लार्ड डलहौज़ी को भारतीय रेलवे का जनक माना जाता है। लार्ड डलहौज़ी ने ही भारत में रेल को लाने की शुरुआत की थी। लार्ड डलहौज़ी साल 1848 से 1856 तक भारत के गवर्नर रहे। इन्ही सालो में भारत के अंदर रेल आने की शुरुआत हुई थी। साल 1832 में मद्रास के अंदर पहली बार भारत में रेल सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया था।
इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। 5 साल कड़ी मेहनत करने के बाद साल 1837 मैं भारत के अंदर पहली ट्रैन चलायी गयी थी। भारत की ये पहली ट्रैन रेड हिल्स (लाल पहाड़ी) से चेन्नई के चिन्ताद्रीपेठ (Chintadripet) तक चलायी गयी थी। इस ट्रैन में स्टीम इंजन का प्रयोग किया गया था जिसको विलियम अवेरी (William Avery) ने बनाया था। इस प्रथम रेल का निर्माण सर आर्थर कॉटन (Sir Arthur Cotton) ने किया था।
इस ट्रैन का उपयोग मद्रास में बन रहे एक रोड के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले ग्रेनाइट पत्थरों को लाने और ले जाने के लिए किया गया था। इसका नाम रेड हिल रेलवे रखा गया था। साल 1845 में सर आर्थर कॉटन ने ही गोदावरी डैम कंस्ट्रक्शन रेलवे (Godavari Dam Construction Railway) का निर्माण किया था। इस ट्रैन का इस्तेमाल गोदावरी नदी पर बाँध बनाने में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों को लाने और ले जाने के लिए किया गया था।
8 मई सन 1845 को मद्रास रेलवे का गठन हुआ था। उसी साल ईस्ट इंडिया रेलवे (East India Railway) का भी गठन हुआ। कुछ साल इसी तरह भारत का रेलवे सिस्टम काम करता रहा। 1 अगस्त सन 1849 को संसद के एक अधिनियम के तहत ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे (Great Indian Peninsular Railway GIPR) का गठन हुआ। इस अधिनियम के अनुसार भारतीय रेलवे को निर्माण करने के लिए मुफ्त में जगह देने की गारंटी दी गयी थी। इसके बदले में भारतीय रेलवे को अपने मुनाफ़े का 5 प्रतिशत हिस्सा रेल बनाने वाली अंग्रेजी कंपनियों को देना था।
17 अगस्त 1849 को ये नियम लागू कर दिया गया। साल 1851 में रुड़की के अंदर सलोनी एक्वेडक्ट रेलवे (Saloni Aqueduct Railway) का निर्माण किया गया। इस रेल में इस्तेमाल होने वाले इंजन का नाम एक ब्रिटिश अफसर थॉमसन (Thomson) के ऊपर रखा गया था। इस ट्रैन का उपयोग सलोनी नदी पर बन रहे जल मार्ग की निर्माण सामग्री पहुँचाने के लिए किया गया। साल 1850 में कोलकाता की रेल कम्पनी ‘ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे’ ने भारत में पहली पैसंजर (Passenger) ट्रैन चलाने के लिए पटरियां बिछाने का काम शुरू कर दिया। 3 साल कड़ी मेहनत करने के बाद कोलकाता की इस रेल कम्पनी ने अपना काम ख़त्म कर दिया।
16 अप्रैल 1853 भारतीय रेल के इतिहास का सबसे बड़ा दिन था। इसी दिन भारत की पहली पसेंजर ट्रैन चलायी गयी थी। भारतीय इतिहास की ये पहली ट्रैन मुंबई से थाणे तक चलायी गयी थी। इस ऐतिहासिक ट्रैन ने 16 अप्रैल 1853 को दोपहर 3:30 बजे महाराष्ट्र के बोरीबन्दर टर्मिनल से थाणे तक का सफर तय किया था। ये सफर 34 किलोमीटर लंबा था। भारत की इस पहली पैसंजर ट्रैन में 20 डिब्बे थे। इस ट्रैन को खींचने के लिए 3 स्टीम इंजनों का इस्तेमाल किया गया था। इन तीनो इंजनों का नाम सुल्तान, सिंधु और साहिब रखा गया था। पहली बार चली इस ट्रैन में लगभग 400 लोगो ने सफर किया था।
शाम 4 बजकर 45 मिनट पर इस ट्रैन का सफर समाप्त हुआ। ये सफर बेशक छोटा था लेकिन यहीं से भारतीय रेलवे की नीव रखी गयी थी। महाराष्ट्र का बोरीबन्दर टर्मिनल जहाँ से ये ट्रैन चलायी गयी थी, आज उसको हम छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के नाम से जानते हैं। ग्रेट इंडियन पेनिन्सुलर रेलवे कंपनी द्वारा इस पैसंजर ट्रैन के बिछाई गयी पटरियों की चौड़ाई 5 फुट 6 इंच रखी गयी थी। उसके बाद से भारत में पटरियों की चौड़ाई का यही स्टैंडर्ड (Standard) बन गया। अभी तक भारत में इसी चौड़ाई की पटरियां बिछायी जाती हैं।
साल 1854 में बोरीबन्दर से थाणे तक जाने वाले इस रेलवे ट्रैक को कल्याण (Kalyan) तक बढ़ा दिया गया। इसी दौरान भारत के अंदर पहले रेलवे ब्रिज (Bridge) थाणे विडुकटस (Thaane Viaducts) का निर्माण भी किया गया। भारत इतिहास के इस पहले रेलवे ब्रिज का निर्माण थाणे की एक छोटी नदी के ऊपर किया गया था। इस तरह भारत में रेल चलने की शुरुआत हो गयी।
उस समय अलग-अलग कंपनियों द्वारा भारत के अलग-अलग हिस्सों में पटरियां बिछाने का काम शुरू कर दिया गया था। पूर्वोत्तर भारत में पहली पैसंजर ट्रैन 15 अगस्त 1854 को चलायी गयी थी। ये रेल कलकत्ता के हावड़ा से हुगली तक चलायी गयी। हावड़ा से हुगली तक का ये सफर 39 किलोमीटर लम्बा था। इस ट्रैन का निर्माण और संचालन ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने किया था। साल 1855 में ईस्ट इंडिया रेलवे कम्पनी ने भारत की पहली टॉय ट्रैन (Toy Train) ‘Fairy Queen’ को चलाया था। इस ट्रैन में विश्व का सबसे पुराना स्टीम इंजन लगाया गया था। ब्रिटैन की एक ट्रैन निर्माण कंपनी किटसन (Kitson) ने इस ट्रैन को बनाया था।
साल 1881 में इस ट्रैन को आधिकारिक तौर पर चलाया गया। इस ट्रैन को हेरिटेज ट्रैन के रूप में आज भी चलाया जाता है। ये ट्रैन 2 फुट चौड़े रेलवे ट्रैक पर चलती है। इस ट्रैन की रफ़्तार बहुत कम होती है। इस ट्रैन को देखने और इसमें सफर करने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। साउथ इंडिया की अगर बात करें तो वहां पर पहली पैसंजर ट्रैन सन 1856 में चलायी गयी थी। इस ट्रैन ने रोयापुरम (Royapuram) से अरकोट (Arcot) तक का सफर तय किया था। इस ट्रैन का निर्माण और संचालन मद्रास रेलवे (Madras Railway) ने किया था। शुरुआत में इन ट्रेनों के अंदर न तो टॉयलेट होते थे न ही अंधेरा दूर करने के लिए कोई बल्ब। लगभग 50 साल तक ये ट्रेनें बिना टॉयलेट और बल्ब के चलती रही।
आप सोच सकते हैं कि बिना लाइट के रात में ट्रैन का सफर कितना भयानक होता होगा। अंधेरे में ट्रैन के अंदर आपराधिक घटनाये भी बहुत ज़्यादा होने लगी थी। इन आपराधिक घटनाओ से बचने के लिए ट्रेनों में इलेक्ट्रिक बल्ब लगाए गए। साल 1897 में ट्रैन बनाने वाली कई कंपनियों ने ट्रैन के आधुनिक डिब्बे पेश किये जिनमे इलेक्ट्रिक बल्ब जलाने की सुविधा थी। यहीं से ट्रेनों के डिब्बों में बल्ब लगने की शुरुआत हुई। साल 1902 में जोधपुर रेलवे पहली कंपनी बनी जिसने ट्रैन के अंदर इलेक्ट्रिक लाइट्स को स्टैण्डर्ड (Standard) के रूप में प्रस्तुत किया।
इसके बाद से लगभग सभी ट्रेनों में इलेक्ट्रिक लाइट लगायी जाने लगी। लम्बे समय तक ट्रेनों में शौचालय की सुविधा भी नहीं हुआ करती थी। लोग बिना शौचालय का प्रयोग किये लम्बा सफर तय किया करते थे। आप सोच सकते हैं उस समय लोगो को सफर में कितनी परेशानी होती होगी। आखिरकार साल 1891 में ट्रैन के अंदर शौचालय की सुविधा की गयी लेकिन ये सिर्फ प्रथम श्रेणी डिब्बों के लिए थी। प्रथम श्रेणी के अलावा बाकी के आम डिब्बों में ये सुविधा साल 1909 में शुरू की गयी। ट्रैन के सभी डिब्बों में शौचालय की सुविधा दिए जाने का ये किस्सा बड़ा मज़ेदार है।
ये बात पश्चिम बंगाल की है। अखिल चंद्र सेन नाम के एक व्यक्ति को ट्रैन सफर के दौरान टॉयलेट जाने की ज़रूरत हुई। एक जगह ट्रैन रुकने पर ये शख्स झाड़ियों में लघु शंका करने के लिए चले गए। जब इन साहब ने वापस आकर देखा तो ट्रैन जा चुकी थी। अखिल चंद्र इस बात से बेहद नाराज़ हो गए और उन्होंने रेलवे को एक लम्बा चौड़ा शिकायत पत्र लिख डाला। अखिल चंद्र की ये शिकायत काम कर गयी और साल 1909 से ट्रैन के हर डिब्बे में शौचालय की सुविधा दी जाने लगी।
साल 1925 में पहली बार ट्रैन बजट पेश किया गया। इसी साल ट्रेनों के विद्युतीकरण (Electrification) का काम शुरू किया गया। 3 फरवरी 1925 को भारत की पहली इलेक्ट्रिक पैसंजर ट्रैन चलायी गयी। ये पहली इलेक्ट्रिक ट्रैन विक्टोरिया टर्मिनस (Victoria Terminus) से कुर्ला (Kurla) तक चलायी गयी थी। इलेक्ट्रिक ट्रैन के सफलतापूर्वक चल जाने के बाद पूरे भारत में तेज़ी से ट्रेनों का विद्युतीकरण और विस्तार किया जाने लगा। भारतीय रेलवे बहुत तेज़ी से फल-फूल रहा था कि तभी उसको एक बड़ा झटका लगा। 14 अगस्त 1947 में रेलवे, भारत और पाकिस्तान के बीच दो हिस्सों में बंट गया।
देश आज़ाद होने के 4 साल बाद 1951 में रेलवे का राष्ट्रीय करण किया गया। साल 1952 में सभी ट्रेनों के अंदर लाइट और सोने के लिए बर्थ बनाना अनिवार्य कर दिया गया. भारत की पहली फुली एयर-कंडिशन्ड (Fully Air-Conditioned) ट्रैन साल 1956 में दिल्ली और हावड़ा के बीच चलायी गयी। ये बात बहुत से लोगो को पता नहीं होगी कि भारत में सबसे पहली मेट्रो ट्रैन पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में प्रस्तुत की गयी थी। कोलकाता के अंदर भारत की पहली मेट्रो ट्रैन एस्प्लानेड (Esplanade) और भोवानीपुर (Bhowanipur) के बीच 24 अक्टूबर 1984 को चलायी गयी थी।
साल 1988 में शताब्दी एक्सप्रेस को पेश किया गया था। ये ट्रैन 150 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलती थी। यह अपने समय भारत की सबसे तेज़ चलने वाली ट्रैन थी। आज भारत की सबसे तेज़ चलने वाली ट्रैन का नाम वन्दे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) है। इस ट्रैन को साल 2020 में पेश किया गया था। यह ट्रैन 160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलती है। 1837 में चलने वाली पहली ट्रैन से लेकर 2020 की वन्दे भारत ट्रैन तक आने का ये सफर बेहद लम्बा और कठिनाइयों से भरा हुआ रहा है। भारतीय रेलवे ने जो भी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं उस पर प्रत्येक भारतीय नागरिक को गर्व होना चाहिए।