आज जो कहानी हम सुनाने जा रहे हैं वो शायद आपने पहले कभी नहीं सुनी होगी। जैसा की आप सब जानते ही होंगे की भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका जाने के लिए हमें बोट या फिर एयरोप्लेन का सहारा लेना पड़ता है। श्रीलंका जाने का कोई और सड़क मार्ग या ट्रैन रूट मौजूद नहीं है। भारत और श्रीलंका के बीच गहरा समुद्र है। इस समुद्र को पार किये बिना श्रीलंका जाना संभव नहीं है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय भारत से श्रीलंका जाने का एक सीधा रास्ता भी मौजूद था। एक ट्रैन भारत के चेन्नई शहर से श्रीलंका की राजधानी कोलंबो (Colombo) तक जाती थी। इस ट्रैन के ज़रिये भारत का कोई भी व्यक्ति सिर्फ एक टिकट लेकर श्रीलंका जा सकता था। इस कहानी को समझने के लिए हमें वक़्त में थोड़ा पीछे जाना होगा।
ये बात रामायण के समय की है। हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रन्थ रामायण के अनुसार असुर सम्राट रावण भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता का हरण करके श्रीलंका ले गया था। माता सीता को बचाने के लिए प्रभु श्रीराम को हर हाल में लंका पहुंचना था। लेकिन उनके रास्ते में गहरा समुद्र था। इस समस्या का हल निकालने के लिए प्रभु श्रीराम ने कई दिन समुद्र देव की पूजा की। लेकिन कई दिन बाद भी समुद्र देव प्रकट नहीं हुए। गुस्से में प्रभु श्रीराम ने समुद्र को सुखाने के लिए अपना धनुष बाण उठा लिया। प्रभु श्रीराम के इस कदम को देखकर समुद्र देव डर गए और प्रभु श्रीराम के सामने प्रकट हो गए। समुद्र देव ने भगवान श्रीराम से कहा कि वे समुद्र पर पत्थरो का पुल बना लें, में इन सभी पत्थरो का बोझ संभाल लूंगा।
इसके बाद भगवान श्रीराम ने बंदरो की सेना की मदद से समुद्र पर पुल बनाना शुरू कर दिया। महज़ 5 दिनों में ये पुल बनकर तैयार हो गया। इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3 किलोमीटर बतायी जाती है। इस पुल का नाम रामसेतु रखा गया जिसे दुनिया एडम्स ब्रिज के नाम से भी जानती है। ये पुल भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है। रामायण की ये कहानी लाखो वर्ष पुरानी है। समय के साथ-साथ ये पुल भी धीरे धीरे कमज़ोर होकर टूटता रहा। आज इस पुल के सिर्फ अवशेष ही बचे हैं। इन्ही अवशेषों के ऊपर कुछ समय पहले एक ट्रैन रूट बनाया गया था जो भारत को सीधा श्रीलंका से जोड़ देता था।
भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाली इस ट्रैन का नाम था बोट मेल (Boat Mail)। इस ट्रैन को इंडो-सीलोन (Indo Ceylon) नाम से भी जाना जाता था। ये एक ऐसी ट्रैन थी जो भारत से सीधा श्रीलंका पहुंचा देती थी। बोट मेल भारत की सबसे प्रतिष्ठित ट्रेनों में से एक मानी जाती है। ये ट्रैन 19 वी सदी से ही भारत और श्रीलंका को जोड़ने का काम करती आ रही थी। शुरुआत में इस ट्रैन का रूट थोड़ा अलग था। पहले ये ट्रैन चेन्नई (Chennai) से थूथुकुड़ी (Thoothukudi) जाती थी और फिर थूथुकुड़ी से स्टीमर नाव (Steamer Boat) के ज़रिये लोग श्रीलंका के कोलंबो (Colombo) तक जाते थे। इस रूट को तय करने में 21 घंटे 50 मिनट का समय लगता था। साल 1914 में पामबन (Pamban) ब्रिज बनने के बाद इस ट्रैन का रूट चेंज कर दिया गया। अब ये ट्रैन चेन्नई से धनुष्कोडी (Dhanushkodi) तक जाती थी।
धनुष्कोडी पहुँचने के बाद सभी यात्री स्टीमर नाव के ज़रिये तलाईमन्नार (Talaimannar) तक जाते थे जहाँ से उन्हे दूसरी ट्रैन सीधा कोलंबो तक पहुंचा देती थी। स्टीमर नाव व दूसरी ट्रैन का खर्चा टिकट में ही सम्मलित होता था। यात्रियों को सिर्फ एक टिकट लेना होता था और वो भारत से श्रीलंका पहुँच जाते थे। इस नए रूट ने रास्ते को अधिक आसान और छोटा बना दिया था। पिछले रूट के मुकाबले इस रूट से सफर करने पर काफी समय बच जाता था। लम्बे समय तक ये ट्रैन लोगों को श्रीलंका पहुंचाने का काम करती रही। साल 1964 में एक ऐसी घटना घटी कि इस ट्रैन का रूट हमेशा के लिए चेंज हो गया। जो ट्रैन पिछले कई दशकों से लोगों को भारत से श्रीलंका ले जाने का काम कर रही थी अचानक हुई इस घटना का शिकार हो गयी।
साल 1964 तक सब कुछ ठीक चल रहा था। फिर एक दिन अचानक एक भयंकर साइक्लोन (Cyclone) तूफ़ान आया और सब कुछ तबाह कर गया। ये तूफ़ान 18 दिसंबर 1964 से 26 दिसंबर 1964 तक चलता रहा। इस दौरान इस तूफ़ान के रास्ते में जो भी आया उसने उसको तबाह कर दिया। ये तूफ़ान भारत में आने वाले सबसे तेज़ बवंडर तूफानों में से एक था। इस तूफ़ान के संकेत पहले ही मिलने शुरू हो गए थे। 15 दिसंबर को अंडमान समुद्र क्षेत्र में कुछ हल चल देखी गयी थी। 18 दिसंबर तक इस तूफ़ान ने बवंडर का रूप ले लिया था। 23 दिसंबर तक ये तूफ़ान बेहद भयंकर रूप ले चुका था।
इस समय इस तूफ़ान की हवा लगभग 240 किलोमीटर/घंटा से चल रही थी। अब इस तूफ़ान ने भारत की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया था। उसी दिन ये तूफ़ान भारत के पामबन (Pamban) आइलैंड पर पहुँच गया। तीन दिन तबाही मचाने के बाद ये तूफ़ान आखिरकार 26 दिसंबर को समाप्त हुआ। लेकिन तब तक ये अपना कहर ढा चुका था। तूफ़ान के समाप्त होने के बाद पता चला कि इसने कितना नुकसान पहुँचाया है। इस तूफ़ान की चपेट में सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका भी आया था। भारत के साथ-साथ श्रीलंका में भी इस तूफ़ान ने बहुत नुकसान किया था।
इस तूफ़ान ने लगभग 1800 लोगों की जान ली थी। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मरने वालो की संख्या 2000 से अधिक थी। 22 दिसंबर को तूफ़ान ने श्रीलंका के उत्तरी भाग पर हमला किया। तूफ़ान के इस हमले के कारण 5000 घर और 700 मछली पकड़ने वाले जहाज़ पूरी तरह तबाह हो गए। पामबन आइलैंड पर मरने वालो की संख्या लगभग 1000 थी। श्रीलंका में इस तूफ़ान को इतिहास की सबसे बड़ी ट्रेजेडी का नाम दिया गया। इस तूफ़ान का सबसे ज़्यादा असर पामबन आइलैंड पर हुआ। 3000 से ज़्यादा लोग घायल होकर आइलैंड पर फंस गए थे। इन लोगों में ज़्यादातर बाहर से आए हुए टूरिस्ट थे।
तूफ़ान के कारण लगभग 11.5 अरब रुपयों की प्रॉपर्टी का नुकसान हुआ था। इस तूफ़ान ने भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले पामबन ब्रिज को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। आइलैंड पर मौजूद सभी कम्युनिकेशन लाइन्स बर्बाद हो गयी थी। आइलैंड पर लोग 3 दिन तक बिना खाये पिए घायल हालत में इधर उधर मदद के लिए भटकते रहे। जब तूफ़ान थम गया तो लोगों को हेलीकाप्टर से मदद पहुंचाई गयी। एयर फाॅर्स (Air Force) की मदद से लोगों को खाना और घायल लोगों को अस्पताल पहुँचाया गया।
इस तूफ़ान ने अगर किसी एक टाउन या शहर को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुँचाया था तो वह था धनुष्कोडी (Dhanushkodi)। भारत और श्रीलंका को ट्रैन के ज़रिये जोड़ने में धनुष्कोडी का बहुत बड़ा हाथ था। चेन्नई से चलने वाली बोट मेल (Boat Mail) ट्रैन का आखिरी स्टेशन धनुष्कोडी हुआ करता था। धनुष्कोडी से श्रीलंका जाने के लिए स्टीमर बोट का उपयोग किया जाता था। धनुष्कोडी से कोलंबो (Colombo) का ये सफर सिर्फ 35 किलोमीटर का हुआ करता था। साइक्लोन तूफ़ान ने धनुष्कोडी को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। इस तूफ़ान के कारण मरे कुल 1800 लोगों में से 800 लोग सिर्फ इस छोटे से टाउन के थे।
साइक्लोन तूफ़ान से पहले धनुष्कोडी को पामबन आइलैंड का कमर्शियल सेन्टर कहा जाता था। इस छोटे से टाउन में एक रेलवे स्टेशन, एक कस्टम ऑफिस, एक पोस्ट और टेलीग्राफ ऑफिस, दो मेडिकल इन्स्टिटूशन्स (Medical Institutions), एक रेलवे हॉस्पिटल, एक पंचायत यूनियन डिस्पेंसरी और एक हायर ऐलीमेंट्री स्कूल हुआ करते थे। यही कारण था कि धनुष्कोडी को कमर्शियल सेन्टर कहा जाता था। साइक्लोन तूफ़ान ने इस पूरे टाउन को बर्बाद कर दिया था। इस टाउन में एक भी इमारत ऐसी नहीं बची थी कि जिसको इस तूफ़ान ने बर्बाद न किया हो। तूफ़ान ने धनुष्कोडी रेलवे स्टेशन को भी बर्बाद कर दिया था। यही स्टेशन भारत और श्रीलंका को जोड़ने का मुख्य केंद्र हुआ करता था।
जिस समय ये साइक्लोन तूफ़ान धनुष्कोडी पहुंचा था उसी समय बोट मेल की एक पैसेंजर ट्रैन यात्रियों को लेकर धनुष्कोडी की तरफ आ रही थी। ये 22 दिसंबर 1964 की एक अँधेरी रात थी। रात के लगभग 11:55 का समय हो रहा था। ट्रैन नंबर 653 आगे आने वाले खतरे से अंजान धनुष्कोडी की तरफ बढ़ रही थी। ये इस ट्रैन के लिए रोज़ का काम था। ये ट्रैन रोज़ाना यात्रियों को धनुष्कोडी तक पहुंचाती थी जहाँ से यात्रियों के लिए स्टीमर तैयार खड़ा मिलता था। तूफ़ान की वजह से ट्रैन को दिया जाने वाला खतरे का सिग्नल ट्रैन तक नहीं पहुँच पाया। तूफ़ान की वजह से मौसम बहुत ख़राब था। ड्राइवर ने सिग्नल के लिए कुछ समय इंतज़ार किया। जब उसको आगे से कोई सिग्नल नहीं मिला तो उसने रिस्क लेने का सोचा।
ड्राइवर ने रिस्क लेकर ट्रैन को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। कुछ दूर आगे जाने के बाद ही ट्रैन तूफ़ान की चपेट में आ गयी। उस दिन तूफ़ान की हवा की रफ़्तार लगभग 280 किलोमीटर/घंटा थी। आज के समय में इतनी तेज़ रफ़्तार वाले तूफ़ान को सुपर साइक्लोन तूफ़ान कहा जाता है। 23 फुट ऊंचे इस तूफ़ान से टकराने के बाद ट्रैन अपने सभी 6 डिब्बों के साथ समुद्र में गिर गयी। कोई भी व्यक्ति इस हादसे में बच नहीं पाया। बताया जाता है कि उस समय ट्रैन में लगभग 200 लोग मौजूद थे। ये सभी लोग हमेशा के लिए समुद्र की गहराई में खो गए।
आज इस घटना को हुए 56 साल बीत चुके हैं। आज भी धनुष्कोडी वीरान पड़ा हुआ है। इस घटना के बाद राज्य सरकार ने धनुष्कोडी को घोस्ट टाउन घोषित कर दिया था। साथ ही सरकार ने इस टाउन को इंसान के रहने के लिए खतरनाक और इनहेबीटेबल (Inhabitable) भी घोषित कर दिया है। कोई भी इंसान अब उस टाउन में नहीं रहता है। धनुष्कोडी में बनी इमारतों के अवशेष अभी भी वहां मौजूद हैं। इस टाउन के बर्बाद होने के बाद इंडिया से श्रीलंका जाने का ये ट्रैन व स्टीमर का सफर हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। आज ये बात लोगों को याद भी नहीं है कि श्रीलंका जाने के लिए ऐसा भी कोई रूट हुआ करता था।
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